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लेखनी ,# कहानीकार प्रतियोगिता # -01-Jul-2023 मेरा बाप मेरा दुश्मन भाग 7

             

                             मेरा बाप मेरा दुश्मन  (  भाग 7  )

    

           अब तक आपने पिछले छः भागौ में पढ़ा कि किस तरह तान्या व विशाल एक दूसरे से  प्यार करते हैं और वह घर से भागकर  शादी कर लेते हैं । लेकिन जैसे ही तान्या को मालूम होता है कि उसके मम्मी पापा ने उसके भागने के बाद  जहर खाकर  आत्महत्या करली तब तान्या स्वयं को उनका  अपराधी समझकर टेन्शन में आजाती है।

          इसलिए  वह अपनी बेटी जिसे प्यार करती है उसे सम्भाल नहीं पाती जिससे वह जिद्दी होजाती है। उधर तान्या बीमार रहने लगती है और उसे ट्यूमर होजाता है। आगे की कहानी इस भाग में पढ़ाए।

 

जबसे तान्या को ट्यूमर का पता चला था तबसे उसे अपने जीवन का अंत  नजर आने लगा था। उसके जीने की इच्छाऐं भी मर चुकी थी।

       वह अपने दिल पर अपराधौ का बोझ लिए जी रही थी। उसने विशाल को भी समझाया कि वह रमला का ध्यान रखना सीखले क्यौकि अब उसकी साँसे मालूम नहीं कब बन्द होजाय।

       तान्या रमला से अपना ममत्व भी कम करने की कोशिश करती जारही थी। वह सोचती थी कि वह उससे दूरी बनाले जिससे उसके मरने के बाद उसकी याद करके परेशान न हो।

             एक दिन  तान्या के मन में बिचार आया कि ईश्वर उसके बुरे कर्मौ की सजा अवश्य देता है। उसने भी अपने मम्मी पापा के साथ जो अपराध किया था यह उसका ही प्रतिफल है जो उसे भोगना होगा।

        उसे बचपन में अपने पापा द्वारा सुनाया हुआ एक दृष्टान्त याद आगया।

       एक पिता व बेटी कहीं जारहे थे रास्ते में एक नदी पार करनी थी। नदीं में पानी बहुत था।

     पिता बेटी से बोला," बेटी तू मेरा हाथ पकड़ले । "

     बेटी बोली," नहीं पापा आप मेरा हाथ पकड़लो।"

     पिता बोला," बेटी तूने मेरा हाथ पकडा़ अथवा मैने तेरा हाथ पकडा़ इससे क्या फर्क पडे़गा।  "

     बेटी तपाक से बोली," पापा बहुत फर्क पडे़गा। मैं किसी परिस्थित बस आपका हाथ छोड़कर अलग हो सकती हूँ परन्तु एक बाप अपनी बेटी का हाथ किसी भी परिस्थित में नहीं छोड़ सकता है। "

     पिता की आँखौ से आँसूऔ की गंगा जमुना बहने लगी और उसने अपनी बेटी को गले लगा लिया।

      आज तान्या इस दृष्टान्त को याद करके रोने लगी कि मैने परिस्थित बस अपने पापा का हाथ छोड़ दिया था। यह दृष्टान्त उसके ऊपर  सही लागू होगया था।

       आज उसको अपने पापा का चेहरा याद आरहा था। उसके कानौ में उसके पापा की आवाज आ रही थी कि जैसे वह  यह कह कर हस रहे हो कि तान्या तूने तो बास्तव में मेरा साथ छोड़ दिया।

                तान्या को अपने   किये गये अपराध  पर बहुत अफसोस हो रहा था। परन्तु अब उसके बस में कुछ भी नहीं रहा था। अब केवल अफसोस करने के अलावा कोई उपाय भी नहीं था। यदि आज वह जीवित होते तो उनके पैर पकड़कर माँफी मांग लेती ।

         विशाल ने भी उसको अच्छे अस्पताल में लेजाने की भी कोशिश की परन्तु तान्या ने मना कर दिया।

    तान्या विशाल को समझाते हुए बोली," विशाल अब मेरे ऊपर पैसा खर्च करने का कोई लाभ नही है।  इसको बचाकर रखो  जिससे भविष्य में काम आयेगा।"

      इसपर विशाल बोला," तानी कैसी बात करती हो। ऊपरवाले पर भी कुछ विश्वास करो।"

     तान्या हसती हुई बोली," ऊपरवाला तो अपने हिसाब से सही कर रहा है। उसकी लाठी से कोई नहीं बच सकता है। वह हमें हमारे कर्मौ की सजा ही तो देरहा है। "

      विशाल उसको  बहुत समझाने की कोशिश कर रहा था।  परन्तु जैसा ईश्वर को मन्जूर होता है उसी तरह की बुद्धि भी बन जाती है। ऐसा ही तान्या के साथ होरहा था ।

       उसकी समझ में अब कुछ नहीं आता था।

      एक दिन तान्या विशाल से बोली," विशाल अब तो कुछ दिन की ही बात है मुझसे आपका पीछा छूट जायेगा। मैने तुम्है कभी भी सुख नही दिया कपितु जब से आई हू़ परेशानी ही दी है। अब कोई अच्छी सी लड़की देखकर शादी करलेना। "

    विशाल आँखें लाल करके बोला,"  क्या पागलपन जैसी बातें करती हो। मैने कभी शिकायत की है क्या ? "

      "नहीं शिकायत तो नहीं की फिर भी दिल में तो होता ही है बैसे भी मै अब ज्यादा समय बीमार ही रहती हूँ। ", तान्या ने उत्तर देते हुए कहा।

          " देखो तान्या भविष्य में इस तरह की बेबकूफी बातें मत करना। मैने तुमसे प्यार किया है कोई सौदा नहीं किया।। मुझे तुम आज भी उतनी ही अच्छी लगती हो जैसी पहले लगती थी। " विशाल उसको समझाते हुए बोला।

          "ठीक है बाबा ! कान पकड़ती हूँ आगे से कुछ नहीं बोलूँगी। " तान्या ने जबाब दिया।

        कुछ समय बाद तान्या की तबियत अधिक खराब होगयी। विशाल उसको लेकर अस्पताल गया ।

       डाक्टर ने तुरन्त आपरेशन के लिए बोला लेकिन तान्या ने विशाल को साफ मना कर दिया। और दवाई लेकर घर वापिस आगयी।

      तान्या अब बहुत जिद्दी होगयी थी। विशाल को डाक्टर ने अकेले में समझा दिया कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। ईश्वर   पर छोड़दो ।

           विशाल उसकी हर इच्छा पूरी करने की कोशिश करता था। वह जोकुछ खाने की इच्छा करती वही लाकर देता था। उसने उसकी सेवा के लिए एक नैकरानी भी रखली थी।

         तान्या के मस्तिष्क से अपने मम्मी पापा की तस्वीर ही नहीं निकलती थी। उसको उनकी परछाई नजर आती थी। जैसे वह कह रहे हैं कि तान्या तूने बहुत बुरा किया है।

        अब तान्या केवल तरल पदार्थ ही खा सकती थी क्यौकि उसका गला बहुत खराब होगया था। विशाल ने अपने आफिस से कुछ दिनौ की छुट्टी लेली थी।

         और एक दिन तान्या विशाल व रमला को छोड़कर भ अपने मम्मी पापा के पास चली गयी। उसका शरीर यहाँ रह गया।

       आज विशाल रमला को अपनी गोद में लेकर खूब रोया  । ईश्वर की इच्छा के सामने किसी की नही चलती है।

नोट:-  कृपया आगे की कहानी भाग 8 में पढ़ने का कष्ट करै। धन्यवादजी।


                                        क्रमशः


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2 Comments

वानी

12-Jul-2023 10:01 AM

Nice

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Varsha_Upadhyay

11-Jul-2023 09:03 PM

👏👌

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